स्वामी विवेकानंद, परमहंस योगानंद, महर्षि महेश योगी और ओशो रजनीश। यह चार नाम ऐसे हैं जिन्होंने अमेरिका को बहुत कुछ दिया। लेकिन यह तो आध्यात्म के क्षेत्र के लोगों के ही नाम है? इसका जवाब यह है कि विज्ञान के क्षेत्र के लोगों के नाम लिखने में पूरा पेज भरना होगा। भारत से जाकर ही लोगों ने अमेरिका को वैज्ञानिक रूप से आगे बढ़ाया। अमेरिका जिस उच्च शिक्षा पर दंभ भरता है वह कुछ भी नहीं है सिवाय जानकारी के। एक बार वेद पढ़ ले तो आप उच्च रूप से शिक्षित हो जाएंगे। उस शिक्षा का कोई मतलब नहीं जो हमसे आधुनिक बनने के नाम पर हमारे संस्कार छीन ले। अमेरिका को भारत ने दिया अमृत और उसके बदले में मिला जहर। लेकिन सवाल यह उठता है कि अमेरिका ने भारत को क्या दिया? अमेरिका या पश्चिम आज भारत को जो विज्ञान दे रहा है वह भारत का ही दिया हुआ है जिसे नए रूप में प्रस्तुत करके भारत को ही परोस दिया गया है। हां, अमेरिका ने भारत को यदि कुछ दिया है तो वह है:- खाने में पिज्जा, बर्गर। वस्तुओं में लैपटॉप, कंप्यूटर, मोबाइल। व्यवहार में हिन्दू धर्म और माता-पिता के द्वारा दिए गए संस्कारों के प्रति विद्रोह करना और अमेरिकन जीवन शैली का सम्मान करना। अमेरिका भारत से सबकुछ छीन लेगा और उसे खुद का बनाकर भारत को ही बेच देगा। अमेरिका की यही योग्यता है। खैर…विज्ञान का आधार दर्शन है। जहां दर्शन होगा वहीं विज्ञान होगा। भारत के षट् दर्शन को ही पढ़कर पश्चिम ने अपना विज्ञान खड़ा किया। न्याय (अक्षपाद गौतम), वैशेषिक (कणाद), मीमांसा (आद्याचार्य जैमिनी), सांख्य, वेदांत (वादरायण) और योग (पतंजलि)। इन सभी ने अपना दर्शन खड़ा किया वेद पढ़कर। तब सवाल उठता है कि यदि विज्ञान का अधार दर्शन है तो भारत ने विज्ञान क्यों नहीं खड़ा किया। निश्चित ही भारत ने आज के विज्ञान से कहीं ज्यादा उन्नत विज्ञान विकसित किया था लेकिन पिछले 1000 हजार वर्षों की गुलामी ने सबकुछ मटियामेट कर दिया और आज का आधुनिक विज्ञान सिर्फ 300 वर्ष की कहानी है और वह भी भारत को पढ़कर लिखी गई कहानी। मध्यकाल में संपूर्ण यूरोप और अमेरिका पर भारतीय दर्शन और धर्म का गहरा असर पड़ा। यह वह दौर था जबकि भारतीय दर्शन और धर्म को पढ़ने और उसके अस्तित्व को मिटाने के लिए कट्टरपंथियों में होड़ थी। मध्यकाल को इतिहास का सबसे बर्बर काल कहा जाता है। यदि हम बौद्धकाल की बात करें तो सर्वप्रथम यूनान ने भारत पर कई आक्रमण किया। इससे यूनानी और भारतीय सभ्यता और संस्कृति के बीच मेलजोल बढ़ा। ग्रीस पर भारतीय साहित्य, दर्शन और धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा। ग्रीक धर्म और भारतीय धर्म में बहुत हद तक समानता का कारण भी यही है। उन्होंने भारत से खगोल, ज्योतिष और गणित का ज्ञान ही नहीं लिया बल्कि उन्होंने भारतीय दर्शन के आधार पर अपने विज्ञान को भी खड़ा किया। यूनानी (ग्रीस) ने भारत से ज्योतिष के अलावा चिकित्सा शास्त्र भी सीखकर यूनानी चिकित्सा का विकास किया। यूनान के गणितज्ञ आर्कमिडीज, खगोलविद हिप्पारकस और दार्शनिक हिरैक्लिट्स, एंपिडाक्लीज और डिमाक्रिट्स आदि ने भारतीय ऋषियों के दर्शन को पढ़ा था। यूनान के संबंध भारत, अरब, मिश्र, रोमन और यूरोप से थे। उस काल में यूनान और भारत ही संस्कृति, सभ्यता, धर्म और दर्शन के प्रमुख केंद्र थे। उस काल में यूनानी, रोमनी, अरबी, मिश्री, यूरोपीयन आदि सभी के देवी-देवता मिलते-जुलते थे और उनकी कथाएं भी लगभग एक जैसी थीं। फर्क था तो सिर्फ भाषा और स्थानीय संस्कृति का। चंद्रगुप्त मौर्य के काल में यूनान के कई विद्वानों ने दरबार में रुककर यहां के आयुर्वेद, योग, विज्ञान, खगोल, वास्तुशास्त्र, ज्योतिष, नगर संरचना, विज्ञान, धर्म और संस्कृति का गहराई से अध्ययन किया और फिर उन्होंने इस पर कई किताबें लिखीं और वे इस ज्ञान को अपने देश ले गए। ठीक उसी तरह जिस तरह कि चीन के लोग ले गए थे। हेरोडोटस, टेसियस, नियार्कस, आनेसिक्रिटस और अरिस्टोवुलास आदि सभी सिकंदर के समकालीन थे। इनके बाद सबसे बड़ा नाम मेगस्थनीज का लिया जाता है। मेगस्थनीज, जो यूनानी राजा सेल्यूकस का राजदूत था, उसने चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में रहकर ‘इण्डिका’ नामक ग्रंथ की रचना की थी जिसमें तत्कालीन मौर्यवंशीय समाज एवं संस्कृति का विवरण था।
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