दिल्ली के वसंत विहार में हुए निर्भया कांड में दोषी करार दिया गया नाबालिग अपराधी अब शीघ्र ही रिहा हो जायेगा क्योंकि किशोर न्याय अधिनियम -2000 के तहत केवल 3 साल की सजा हुयी थी जो पूरी हो रही है I हमारे न्याय तंत्र के प्रावधानों के कारण यौन अपराध की वीभत्स घटना में लिप्त होने पर भी अपराधी जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का सहारा लेकर बच गया I भारत में 18 साल से कम उम्र का किशोर नाबालिग माना जाता है लेकिन आज मोबाइल और इन्टरनेट के युग में बच्चे अब छोटी उम्र में जवानी की दहलीज़ पर कदम रख रहे हैं जिसमें परिवारीजन व माता –पिता के साथ साथ स्कूल जैसी संसथाएं भी बराबर जिम्मेदार हैंI चौबीसों घंटे टीवी के विभिन्न चैनल पर चलने वाले प्रोग्रामों का भी योगदान है Iयही मुख्य कारण है जिससे यौन अपराध की घटनाओं में नाबालिग किशोरों की गिरफतारी 288%तक व चोरी –डैकती की घटनाओं में किशोरों की भागीदारी 200% तक पहुँच गयी है Iजघन्य अपराध में शामिल अपराधी को अपराध के अनुपात में दंड मिले इसलिए सभी लोग बालिग होने की उम्र को 18 साल से कम करने की वकालत कर रहे हैं I क्या समाज में कम होते जा रहे नैतिक मूल्यों पर रोक नहीं लगाई जा सकती ?क्या माता – पिता की बच्चों के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं है ? इस विकास व उपभोग के युग में माता व पिता दोनों अपने बच्चे को पहले क्रच में फिर घर में अकेला छोड़कर धन अर्जन में लिप्त रहते हैं व बच्चे के विकास व उसके परिवेश के बारे में बिलकुल उदासीन I धन की प्रचुरता व बच्चे के प्रति माता –पिता की उदासीनता के कारण ही नाबालिग किशोर सड़कों पर मोटर साइकिल तेज़ रफतार के साथ दौड़ाते पाए जाते हैं I
हमारे देश में आम जन आपसी बात –चीत के दौरान मानता है कि देश की कानून व्यवस्था बहुत लचर हैI अपराधी या तो पकड़ में नहीं आता या फिर आसानी से छूट जाता है I जमानत का भी वो दुरपयोग करता है जिस बात को हरयाणा सरकार के मंत्री को समझाने के चक्कर में महिला IPS अधिकारी को जिले के पुलिस प्रमुख का पद गंवाना पड़ा I मामला अवैध शराब के व्यवसाय पर रोक लगाने का था और मंत्री महोदय अधिकारी को निकम्मा साबित करने पर तुले थे व वह अधिकारी यह बताने की कोशिश कर रही थी कि अवैध शराब के व्यापारी पकड़े जाते हैं परन्तु उनको जमानत मिल जाने के कारण यह कारोबार ख़त्म नहीं होता I सभी विद्वान सहमत होंगे कि अपराध के नियंत्रित न होने में सबसे अधिक जिम्मेदार राजनेता हैं I कानून का पालन करवाने वाले अधिकारी भी राजनेताओं की उँगलियों पर नाचते हैं I यह तो मानव स्वभाव है कि यदि किसी के कहने से हम कोई गलत कार्य कर रहे हैं तो उसी कार्य को हम अपने लिए धन अर्जित करने का माध्यम क्यों नहीं बना सकते अर्थात नैतिक मूल्यों की भारी कमी I
हमारे लोकतंत्र में “विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता “ के अंतर्गत हम अपने प्रधानमंत्री तक को मौनी बाबा , कठपुतली , असहाय , असमर्थ शब्दों के अलावा अब तो कायर व मनोरोगी जैसे शब्दों से विभूषित कर सकते हैं I हमारे लोकतंत्र के नायक (जनता के द्वारा चुने प्रतिनिधि )अपनी गरिमा का भी ख्याल नहीं रखते हैं I विधाई सदन में बैठ कर मोबाइल पर अशलील क्लिप देखते हैं I आँख के बदले आँख की नीति के आधार पर जो माननीय संसद को ठप्प रखते हैं वो क्या अपने समर्थक (जो अपराधी है )को इसी नीति के आधार पर दंड दिलाने में सक्रिय योगदान करेंगे ?
सीबीआई हमारे देश में एक ऐसी संस्था है जिसे कानून के अंतर्गत जांच के लिए भ्रस्टाचार से लेकर हत्या व किसी भी जघन्य अपराध के मामले सौंपे जा सकते हैं I जब जांच शुरू होती है तो उसे भी सरकार का तोता कहा जाता है I राजनेता कोई भी मोका जांच एजेंसी को प्रभावित करने का नहीं छोड़ते Iकारण केवल एक ही है राजनीती में व्याप्त अपराध , भ्रस्टाचार और अनैतिकता I पुरानी कहावत है जस राजा तस प्रजा I कानून में दंड का प्रावधान चाहें जितना भी कड़ा कर दिया जाये जब तक समाज, देश के नायक और कार्यपालिका कानून के प्रति प्रतिबद्ध नहीं होंगे देश व समाज में अपराधी जन्म लेते रहेंगे Iकानून के अंतर्गत प्रस्तावित दंड देना केवल उस तरह से है जैस फल देने वाले पेड़ में दवा छिड़ककर रोग को नष्ट करना I
writer Atul