ओलंपिक खेलों में 52 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद भारत की बतौर पहली महिला जिम्नास्ट के रूप में क्वालीफाई करने का गौरव हासिल करने वाली दीपा करमाकर एक समय अपने सपाट तलवों के कारण इन खेलों का हिस्सा तक बन पाने में असमर्थ थीं।
9 अगस्त 1993 को अगरतला के त्रिपुरा में जन्मीं दीपा 6 वर्ष की आयु में जिम्नास्ट से जुड़ीं, लेकिन दीपा के पैर उस समय सपाट थे और जिम्नास्टिक में इस तरह के व्यक्तियों को या तो बहुत दिक्कत होती है या वे इस कारण से इन खेलों का हिस्सा ही नहीं बन पाते हैं। हालांकि अनुभवी कोच बिस्बेश्वर नंदी के मार्गदर्शन में जिम्नास्ट की ट्रेनिंग लेने वालीं दीपा ने इस समस्या से भी पार पाया।
दीपा के कोच नंदी ने कहा कि दीपा जब मेरे पास आई थीं तो उनके पैर सपाट थे और जिम्नास्ट के लिए यह अच्छा नहीं होता है। ऐसे पैरों की वजह से एथलीट के लिए पैर जमाना और भागना या कूदना आसान नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि दीपा की इस समस्या को ठीक करना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। दीपा के पैरों में उस तरह का घुमाव लाना आसान नहीं था, लेकिन बचपन से ही हमने उनके पैरों को लेकर काफी मेहनत करनी पड़ी, क्योंकि यही उनकी सबसे बड़ी समस्या थी।
वर्ष 2015 में अर्जुन अवॉर्ड जीत चुकीं दीपा भी मानती हैं कि उन्हें यहां तक पहुंचाने का श्रेय केवल उनके कोच को जाता है। बचपन से ही जिम्नास्ट की ओर दीपा का रुझान करने का श्रेय उनके पिता को जाता है, जो भारतीय खेल प्राधिकरण (सा
ई) के कोच रह चुके हैं।
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