पिछले दो दशकों में भ्रष्टाचार के सारे रिकोर्ड तोड़ चुकी भारतीय राजनीती का स्तर इतना निम्न हो गया की लोग राजनेता का मतलब भ्रष्ट मानने लगे. ऐसे में नेताओ के आचार विचार और उनके पहनावे के अनुकरण की बात बेमानी हो गयी. आम सभाओं में लोग नेताओं को सुनने नहीं, उनकी निकटता पाने और उनके साथ अपनी तस्वीर खिचवाने को आने लगे. जिससे बाद में इस निकटता को बता कर और उनके साथ खिची अपनी तस्वीर को दिखा कर फायदा उठाया जा सके. नेताओं की सभाओं में मंच के सामने कम, मंच पर ज्यादा भीड़ जुटने लगी. कई नेताओं के मंच इसी भीड़ के करण टूट भी गए. दो दशक के इस दौर में अनेकों राजाओ और कलमाड़ीयों ने भ्रष्टाचार के क्षेत्र में भारी प्रतिष्ठा अर्जित की. अनेकों जेल गए और जमानत पर छूट कर फिर अपने प्रकार की राजनीती में जुट गए, और अनेकों विभिन्न कांडों में समाचार की सुर्ख़ियों में रहे. कुल मिला कर यह समय भारतीय राजनीती के पराभव का समय था. भारतीय राजनीती के निराशा भरे इस माहौल में आशा की एक किरण के रूप में नरेंद्र मोदी का उदय हुआ. गुजरात में उनके सफल प्रशासन की ख्याति से लोग परिचित तो थे पर पुरे देश से उनका संवाद २०१४ के लोकसभा चुनाव ने कराया . चुनाव में विजय के उपरांत जिस कुशलता से उन्होंने प्रशासन को चलाया उसने भी उन्हें लोगो में प्रतिष्ठित किया. लाल किले की प्राचीर से उन्होंने सफाई, शौचालय की बात कह कर आम आदमी के मन को छू लिया. विदेशो के सफल दौरे, चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा पर उनके स्वागत के साथ ही भारत का पक्ष मजबूती से रखना और पकिस्तान की गोलीबारी का पहली बार कडा जबाब दे कर उन्होंने भारत के जनमानस को अपना बना लिया. महात्मा गाँधी को अपनी संपत्ति मानने वाली और भारत पर साठ सालों तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी जो काम नहीं कर सकी वो नरेंद्र मोदी ने कर दिखाया. उन्होंने गाँधी जयंती पर देश भर में सफाई का अभियान चला कर लोगों में नई चेतना भर दी. नेताओं को भ्रष्ट मानने वाले भारत के नागरिक इस नेता के अवाहन पर अपने घरों, मुहल्लों, शहरों की सफाई में जुट गए. अब नरेन्द्र मोदी ने सांसदों को एक गाँव गोद लेने और उसे आदर्श गाँव बनाने का चेलेंज दिया है. जिसे सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के सांसदों को भी चाहे-अनचाहे अपनाना ही पड़ेगा. इस योजना में काम ना करने वाले सांसदों को समीक्षा के समय आलोचना झेलनी पड़ सकती है. अपने राजनैतिक भविष्य के लिए चाहे- अनचाहे सांसदों को इस योजना में काम करना ही पड़ेगा, और देश के करीब आठ सौ गाँव हर वर्ष विकास की रह पर आगे बढ़ सकेंगे. इसके पहले दशकों से किसी नेता की बात का ऐसा प्रभाव देखने को नहीं मिला. साठ के दशक में अन्न संकट के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के आवाहन पर लोगों ने सप्ताह में एक दिन उपवास रखना शुरू कर दिया था. उस समय दिल्ली में सोमवार को अनेकों रेस्टोरेंट स्वेच्छा से बंद रहने लगे थे. इससे पहले महात्मा गाँधी और आजादी की राह में शहीद हुए अनेको भारत के सपूत ऐसे थे जिनका अनुकरण भारत के नागरिकों ने किया था. किन्तु लालबहादुर शास्त्री के उपरान्त नरेंद्र मोदी ऐसे नेता के रूप में उभरे है जिनकी बात को लोगों ने सुना माना और अपनाया है. मोदी की पोशाकों का क्रेज आज भारत के लोगों में जोरों पर है. उनके मुखौटों की भारी मांग चुनाव के समय रहती है. कुल मिला कर मोदी ने भारतीय राजनीती की गिरती हुई साख को बचाने का काम किया है और देश के नागरिकों को निराशा भरे माहौल से बाहर निकला है.अब कहा जा सकता है की भारतीय राजनीती में एक नए युग की शुरुआत हुई है.
निराशा में आशा की किरण

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