प्रत्येक राष्ट्र को उसकी युवा शक्ति पर नाज होता है।यह स्वाभाविक है।जोश,जज्बा व जुनून से परिपूर्ण यह वर्ग,राष्ट्र का भविष्य तय करता है।युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद ने युवा पीढ़ी को राष्ट्र के उन्नयन में महत्वपूर्ण माना था।उन्होंने अपने उद्बोधन में सर्वगुण सम्पन्न युवाओं के जरिए देश की काया तक पलट देने की बात कही थी।उत्पादक जनसंख्या का यह वर्ग,अपनी श्रमशक्ति से शेष निर्भर जनसंख्या का पेट भरता है।उच्च आर्थिक विकास वाले अधिकांश विकसित राष्ट्र,जब अपनी वृद्ध होती जनसंख्या से दो-चार हो रहे हैं,तब भारत अपनी युवाशक्ति के बल पर वैश्विक क्षितिज का सिरमौर बनने की तैयारी में है।भारत इस वक्त विश्व का सबसे युवा देश है.संयुक्त राष्ट्र की हालिया रिपोर्ट भी यही बताती है कि भारत में 35 करोड़ युवा हैं,जो विश्व के किसी भी देश में नहीं है.लेकिन अपनी युवाशक्ति पर जरुरत से ज्यादा इठलाने की जरुरत नहीं है।चूंकि,यह समाज का सबसे संवेदनशील वर्ग है,इसलिए राह से भटकने की संभावनाएं कई गुणा बढ जाती हैं.सवाल यह है कि क्या युवाओं की क्षमता,कुशलता का संपूर्ण उपयोग हो पा रहा है?क्योंकि किसी देश की युवा आबादी ही उस देश की कार्यशील जनसंख्या होती है।अभी यदि युवा शक्ति का संपूर्ण उपयोग ना हो तो कुछ वर्षों बाद यही युवा प्रौढावस्था में प्रवेश करेंगे और भारशील जनसंख्या मेँ परिणत हो जायेंगे।फिर हमारे पास हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं बचेगा।भले ही आज चीन,जापान विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश हैं लेकिन आज वे अपनी वृद्ध होती जनसंख्या से दो-चार हो रहे हैं।प्रसंगवश,1945 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में हुई भीषण तबाही याद आती है.जापान सबकुछ खो चुका था।बर्बाद हो गया था.उम्मीद ना थी कि जापान इससे उबर भी पाएगा।लेकिन याद करने वाली बात याद यह है कि उस समय जापान युवाओं का देश था।भौतिक संपत्ति के विनाश और मानव शक्ति के ह्रास के बावजूद युवाओं ने हालात को चुनौति के रुप में लिया और धीरे-धीरे जापान मजबूत अर्थव्यवस्था वाले देशों में अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो गया।ये है युवाओं की असल शक्ति।ठान लिया तो करके ही दिखाना है।भारत के संदर्भ में बात करें तो भारतीय युवा क्षमतावान तो प्रतीत होते हैं,लेकिन मूल्यपरक,गुणवत्तापूर्ण व रोजगारपरक शिक्षा के अभाव में युवाओं की क्षमता का आवश्यक विकास नहीं हो पाया है।देश में गरीबी,बेरोजगारी का बढता ग्राफ,युवाओं को प्रचलित शासन व्यवस्था के विरुद्ध रोष पैदा कर विरोध का वामपंथी मार्ग अख्तियार करने को विवश करती है,जिससे उग्रवाद,नक्सलवाद और आतंकवाद को पोषण मिलता है।ऐसे कृत्यों में युवाओं की भागीदारी देशहित में नहीं है.विभिन्न प्रकार के मादक पदार्थों के सेवन से युवाओं में चारित्रिक पतन हो रहा है।देश के भविष्य के रुप में देखे जाने वाले युवा अपने लक्ष्य से भटक रहे हैं।सामाजिक ताना-बाना और मान-मर्यादा का ख्याल किये बिना असामाजिक कृत्यों की ओर युवाओं का बढता कदम राष्ट्र के लिए शुभ नहीं है।इन सभी समस्याओं का मुख्य कारण सांस्कृतिक मूल्यों में गिरावट का आना है।यूं तो हमारा देश आदिकाल से ही सांस्कृतिक विविधताओं का धनी रहा है,लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण युवा वर्ग भारतीय संस्कृति के प्रति उदासीन हो रहा है।भारतीय संस्कृति की रीढ़ कहे जाने वाली संयुक्त परिवार व्यवस्था आज लगभग छिन्न-भिन्न हो चुकी है।एकाकी जीवन का आदी युवा सामाजिक जीवन से मुंह मोड़ रहा है।और यही एकाकीपन उसे शराब,नशा और अपराध के संसार में धकेल रहा है।भारतीय युवा तमाम बुराईयों के गिरफ्त में आकर दिशाहीन हो रहा है।आज देश का युवा अपनी शक्ति नहीं पहचान रहा है।कहां खो गया है हमारा ओजस्वी युवा?यही समय है जब हम युवाओं का उपयोग कर सकते हैं।लक्ष्य मुट्ठी में होनी चाहिए।भटकाने वाली अनगिनत चीजें राह में आऐंगी।घबराना नहीं है।हौसले के साथ उड़ते जाना है।सफलता निश्चित है।जरुरत है हर एक युवा समाज में एक सशक्त नागरिक की भूमिका निभाते हुए देश को शिखर पर ले जाये।अन्यथा आगे चुनौतियों का पहाड़ बाधा पहुँचाने को लालायित है।सक्षम युवाशक्ति का संरक्षण के अभाव में बिखराव से देश टूट रहा है।भारतीय युवा स्वामी विवेकानंद जी के विचारों एवं दर्शनों को आत्मसात कर अपनी उपयोगिता साबित करे।भारत को सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाकर,’विश्वगुरु’ बनने की ओर अपनी प्रतिबद्धता युवाओं को दिखानी होगी।
*सुधीर कुमार
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