इंसानी कदम आधुनिकता के साथ अंतरिक्ष की ओर बढ़ते जा रहे हैं किन्तु ‘कन्या भ्रूण हत्या’ जैसा कृत्य उसको आदिमानव सिद्ध करने में लगा है। समाज में बच्चियों की गिरती संख्या से अनेक तरह के संकट, अनेक विषमताओं के उत्पन्न होने का संकट बन गया है। विवाह योग्य लड़कियों का कम मिलना, महिलाओं की खरीद-फरोख्त, जबरन महिलाओं को उठाया जाना, बलात्कार, बहु-पति प्रथा आदि विषम स्थितियों से इतर कुछ बिन्दु ऐसे हैं जिनको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। समाज में महिलाओं की संख्या कम हो जाने से शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु महिलाओं की खरीद-फरोख्त होना, एक महिला से अधिक पुरुषों के शारीरिक संबंधों के बनने की आशंका, इससे यौन-जनित रोगों के होने की सम्भावना बनती है। चिकित्सा विज्ञान स्पष्ट रूप से बताता है कि लगातार होते गर्भपात से महिला के गर्भाशय पर विपरीत प्रभाव पड़ता है और इस बात की भी आशंका रहती है कि महिला भविष्य में गर्भधारण न कर सके। पुत्र की लालसा में बार-बार गर्भपात करवाते रहने से गर्भाशय के कैंसर अथवा अन्य गम्भीर बीमारियां होने से महिला भविष्य में माँ बनने की अपनी प्राकृतिक क्षमता भी खो देती है। इसके साथ ही महिला के गर्भाशय से रक्त का रिसाव होने की आशंका भी बनी रहती है, जिसके परिणामस्वरूप महिला के शरीर में खून की कमी होने से अधिसंख्यक मामलों में गर्भवती होने पर अथवा प्रसव के दौरान महिला की मृत्यु हो जाती है। इसके अतिरिक्त एक सत्य यह भी है कि जिन परिवारों में एक पुत्र की लालसा में कई-कई बच्चियों जन्म ले लेती हैं वहाँ उनकी सही ढंग से परवरिश नहीं हो पाती है। उनकी शिक्षा, उनके लालन-पालन, उनके स्वास्थ्य, उनके खान-पान पर भी उचित रूप से ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके चलते वे कम उम्र में ही मृत्यु की शिकार हो जाती हैं अथवा कुपोषण का शिकार होकर कमजोर बनी रहती हैं। . सामाजिक प्राणी होने के नाते हर जागरूक नागरिक की जिम्मेवारी बनती है कि वो कन्या भ्रूण हत्या निवारण हेतु सक्रिय रूप से अपना योगदान दे। बेटियों को जन्म देने से रोकने वाली किसी भी प्रक्रिया का समाज में सञ्चालन होने से रोके। हम अपने-अपने परिवार के बुजुर्गों को ये समझाने का काम करें कि किसी भी वंश का नाम बेटियों के द्वारा भी चलता रहता है। उनको महारानी लक्ष्मीबाई, इंदिरा गाँधी का उदहारण देकर समझाना चाहिए। परिवार के इन बुजुर्गों के ये भी बताना होगा कि जिनके बेटे पैदा नहीं हुए उनके कार्यों से उनका नाम आज तक समाज में आदर के साथ लिया जा रहा है। ऐसे उदाहरणों के लिए स्वामी विवेकानंद, सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाष चन्द्र बोस, जवाहर लाल नेहरू आदि का नाम लिया जा सकता है। बेटे की चाह रखने वाले इन्हीं परिवारीजनों को समझाना चाहिए कि यदि समाज से बेटियाँ समाप्त हो जाएँगी तो फिर वंश-वृद्धि के लिए पुत्र जन्मने वाली बहू कहाँ से आएगी। हम अपने आसपास की, पड़ोस की, मित्रों-रिश्तेदारों की गर्भवती महिलाओं की जानकारी रखें, उनके बच्चे के जन्मने की स्थिति को स्पष्ट रखें। यदि कोई महिला गर्भवती है तो उसको प्रसव होना ही है (किसी अनहोनी स्थिति न होने पर) इसमें चाहे बेटा हो या बेटी। हम स्वयं में भी जागरूक रहें और स्वयं को और अन्य दूसरे लोगों गर्भस्थ शिशु की लिंग जाँच के लिए प्रेरित न करें। इधर देखने में आया है कि दलालों की मदद से बहुत से लालची और कुत्सित प्रवृत्ति के चिकित्सक अपनी मोबाइल मशीन के द्वारा निर्धारित सीमा का उल्लंघन करके भ्रूण लिंग की जाँच अवैध तरीके से करने निकल पड़ते हैं। हम जागरूकता के साथ ऐसी किसी भी घटना पर, मशीन पर, अपने क्षेत्र में अवैध रूप से संचालित अल्ट्रासाउंड मशीन की पड़ताल भी करते रहें और कुछ भी संदिग्ध दिखाई देने पर प्रशासन को सूचित करें। कई-कई जगह पर वैध रूप से पंजीकृत अल्ट्रासाउंड सेंटर्स द्वारा गर्भपात (कन्या भ्रूण हत्या) करने की घटनाएँ प्रकाश में आई हैं। हम सबका दायित्व बनता है कि इस तरह के सेंटर्स पर भी निगाह रखें। इसी के साथ-साथ जन्मी बच्चियों के साथ होने वाले भेदभाव को भी रोकने हेतु हमें आगे आना होगा। उनके खान-पान, रहन-सहन, पहनने-ओढ़ने, शिक्षा-दीक्षा, स्वास्थ्य-चिकित्सा आदि की स्थितियों पर भी ध्यान देना होगा कि कहीं वे किसी तरह के भेदभाव का, दुर्व्यवहार का शिकार तो नहीं हो रही हैं। . यदि इस तरह के कुछ छोटे-छोटे कदम उठाये जाएँ तो संभव है कि आने वाले समय में बेटियाँ भी समाज में खिलखिलाकर अपना भविष्य संवार सकती हैं। अभी से यह चेतावनी सी देना कि समाज में बच्चियों की संख्या भविष्य में कम होते जाने पर उनके अपहरण की सम्भावना अधिक होगी; ऐसे परिवार जो सत्ता-शक्ति से सम्पन्न होंगे, वे कन्याओं को मण्डप से उठा ले जाकर अपने परिवार के लड़कों के उनका विवाह करवा दिया करेंगे; बालिकाओं की अहमियत बढ़ जायेगी और सम्भव है कि बेटियों के परिवारों को दहेज न देना पड़े बल्कि लड़के वाले दहेज दें आदि कदाचित ठीक-ठीक नहीं जान पड़ता है। यह स्पष्ट है कि वर्तमान में महिला लिंगानुपात जिस स्थिति में है, महिलाओं को, बच्चियों को जिन विषम हालातों का सामना करना पड़ रहा है आने वाला समाज बेटियों के लिए सुखमय तो नहीं ही होगा। समाज के प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं को आदर्श रूप में प्रस्तुत करके बच्चियों के साथ-साथ उनके माता-पिता के मन में भी महिलाओं के प्रति आदर-सम्मान का भाव जाग्रत करना होगा और पुत्र लालसा में अंधे होकर बेटियों को मारते लोगों को समझाना होगा कि ‘यदि आज बेटी को मारोगे तो कल बहू कहाँ से लाओगे?’
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