मिसाइल के मामल में चीन और पाकिस्तान से आगे निकला
भारत सहित परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं करने वाले देशों की सदस्यता पर चर्चा के लिए इस साल के अंत से पहले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की बैठक एक बार फिर हो सकती है। आशा है कि गैर-एनपीटी देशों की एंट्री के लिए फिर से इस पर चर्चा होगी और भारत के नाम को आगे किया जाएगा। तीन दिन पहले चीन और कुछ अन्य देशों के कड़े विरोध के कारण भारत एनएसजी की सदस्यता हासिल करने से वंचित रह गया था लेकिन एमटीसीआर में भारत की सदस्यता किसी भी बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में भारत का पहला प्रवेश है!
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘हमने पिछले साल एमटीसीआर की सदस्यता के लिए आवेदन किया था और सारी प्रक्रियात्मक औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। कल विदेश सचिव एस जयशंकर फ्रांस, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग के राजदूतों की मौजूदगी में एमटीसीआर में शामिल होने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करेंगे।’
उल्लेखनीय है कि चीन जिसने हाल में संपन्न 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की पूर्ण सत्र की बैठक में भारत के प्रवेश की राह में रोड़ा अटकाया वह 34 सदस्यीय एमटीसीआर का सदस्य नहीं है।
एमटीसीआर में शामिल होने से क्या होगा : एमटीसीआर में शामिल हो जाने के बाद आने वाले समय में भारत रूस के साथ मिलकर बनाई गई सुपरक्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को अन्य देशों को बेच सकेगा। इसके अलावा भारत अपनी परमाणु तकनीक भी किसी देश को आदान प्रदान कर सकेगा। चूंकि, भारत का असैन्य परमाणु करार अमेरिका के साथ है इसलिए वह एनएसजी, एमटीसीआर, ऑस्ट्रेलिया समूह और वेसेनार अरेंजमेंट जैसे निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में शामिल होने का प्रयास कर रहा है। ये समूह पारंपरिक, परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों और प्रौद्योगिकी का नियमन करते हैं।
एमटीसीआर में भारत के मामले का पिछले साल इटली ने विरोध किया था। वह मरीन विवाद को लेकर भारत से नाखुश था। हालांकि, केरल तट से दूर दो मछुआरों की हत्या के आरोपी दो इतालवी मरीनों को अपने मुल्क वापस लौटने की अनुमति देने के बाद इटली ने अपने विरोध के स्वर को नरम कर लिया। एमटीसीआर में प्रवेश के भारत के प्रयासों को तब प्रोत्साहन मिला जब उसने इस महीने की शुरुआत में हेग आचार संहिता का हिस्सा बनने पर सहमति जताई। हेग आचार संहिता बैलिस्टिक मिसाइल की अप्रसार व्यवस्था से संबंधित है। एमटीसीआर की सदस्यता से भारत उच्चस्तरीय मिसाइल प्रौद्योगिकी की खरीद करने में सक्षम होगा और रूस के साथ इसके संयुक्त उपक्रम को भी बढ़ावा मिलेगा।
NSG पर उम्मीदें कायम : दूसरी ओर, भारत सहित परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं करने वाले देशों की सदस्यता पर चर्चा के लिए इस साल के अंत से पहले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की बैठक एक बार फिर हो सकती है। इस बीच, भारत ने रविवार को चीन को स्पष्ट कर दिया कि द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ने के लिए भारत के ‘हितों’ का ख्याल रखना जरूरी है। गौरतलब है कि एनएसजी सदस्यता के लिए भारत की हालिया कोशिश चीन के अड़ियल रवैये के कारण नाकाम हो गई थी। 48 देशों वाला समूह एनएसजी गैर-एनपीटी देशों को सदस्यता देने की प्रक्रिया पर खास तौर पर चर्चा के लिए इस साल के अंत से पहले बैठक कर सकता है। इससे भारत को अपनी दावेदारी पर दबाव बनाने का एक और मौका मिल सकेगा। बीते शुक्रवार को दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में संपन्न हुए एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन में भारत इस समूह में अपना प्रवेश सुनिश्चित करने में नाकाम रहा था।
भारत को चीन और कुछ अन्य देशों से काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। भारत के एनपीटी पर दस्तखत न करने को उसके विरोध का एक मजबूत आधार बनाया गया था। बहरहाल, राजनयिक सूत्रों ने बताया कि मेक्सिको के सुझाव पर यह फैसला किया गया है कि गैर-एनपीटी देशों के लिए प्रवेश की शर्तों पर विचार के लिए इस साल के अंत से पहले एनएसजी की एक और बैठक आयोजित की जाए। सामान्य स्थिति में एनएसजी की अगली बैठक अगले साल ही किसी महीने में आयोजित की जाती।
एनएसजी की अगली बैठक कुछ ही महीनों में होने की खबरें सामने आने के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि हम चीन पर जोर देते रहेंगे कि द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए आपसी हितों, चिंताओं एवं प्राथमिकताओं का ख्याल रखना जरूरी है। विकास का बयान इसलिए अहम है क्योंकि चीनी विदेश मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया है कि बहुपक्षीय मंच एनएसजी में बीजिंग के विरोध का भारत-चीन संबंधों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।विकास ने यह भी कहा कि सोल में हुई बैठक में भारत को भले ही ‘अपेक्षित परिणाम’ हासिल नहीं हुए, लेकिन भारत एनएसजी में शामिल होने के लिए समर्पित प्रयास करता रहेगा। उन्होंने कहा कि आज भारतीय राजनय को नाकामी का डर नहीं है। यदि हमें मन मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि हमें अपनी कोशिशें दोगुनी करनी होंगी।
विकास ने कहा कि कुछ प्रक्रियाएं ऐसी होती हैं जिसमें लंबा वक्त लगता है। मैं एनएसजी सदस्यता की प्रक्रिया को इसी श्रेणी में रखूंगा। चीन ने गैर-एनपीटी देशों की सदस्यता पर एनएसजी की बैठक जल्द आयोजित करने के मेक्सिको के सुझाव पर विरोध दर्ज कराया था, लेकिन अमेरिका सहित कई देशों ने इस सुझाव का समर्थन किया था।
एनएसजी ने भारत की सदस्यता पर अनौपचारिक चर्चा के लिए एक समिति भी गठित कर दी है और इसकी अध्यक्षता अर्जेंटीना के राजदूत राफेल ग्रॉसी करेंगे
ग्रॉसी की नियुक्ति ऐसे समय में हुई जब एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि सोल में हुई एनएसजी की बैठक भारत को सदस्य के तौर पर स्वीकार करने के लिए राह बनाने के साथ संपन्न हुई। ओबामा प्रशासन के अधिकारी ने वॉशिंगटन में बताया कि हमें यकीन है कि इस साल के अंत तक हमें आगे की राह मिलेगी। इसमें कुछ काम करने की जरूरत है। लेकिन हमें यकीन है कि भारत इस साल के अंत तक एनएसजी का पूर्ण सदस्य बन जाएगा।।
ग्रॉसी की नियुक्ति ऐसे समय में हुई जब एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि सोल में हुई एनएसजी की बैठक भारत को सदस्य के तौर पर स्वीकार करने के लिए राह बनाने के साथ संपन्न हुई। ओबामा प्रशासन के अधिकारी ने वॉशिंगटन में बताया कि हमें यकीन है कि इस साल के अंत तक हमें आगे की राह मिलेगी। इसमें कुछ काम करने की जरूरत है। लेकिन हमें यकीन है कि भारत इस साल के अंत तक एनएसजी का पूर्ण सदस्य बन जाएगा।।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, ‘हमने पिछले साल एमटीसीआर की सदस्यता के लिए आवेदन किया था और सारी प्रक्रियात्मक औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। कल विदेश सचिव एस जयशंकर फ्रांस, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग के राजदूतों की मौजूदगी में एमटीसीआर में शामिल होने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर करेंगे।’
उल्लेखनीय है कि चीन जिसने हाल में संपन्न 48 सदस्यीय परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की पूर्ण सत्र की बैठक में भारत के प्रवेश की राह में रोड़ा अटकाया वह 34 सदस्यीय एमटीसीआर का सदस्य नहीं है।
एमटीसीआर में शामिल होने से क्या होगा : एमटीसीआर में शामिल हो जाने के बाद आने वाले समय में भारत रूस के साथ मिलकर बनाई गई सुपरक्रूज मिसाइल ब्रह्मोस को अन्य देशों को बेच सकेगा। इसके अलावा भारत अपनी परमाणु तकनीक भी किसी देश को आदान प्रदान कर सकेगा। चूंकि, भारत का असैन्य परमाणु करार अमेरिका के साथ है इसलिए वह एनएसजी, एमटीसीआर, ऑस्ट्रेलिया समूह और वेसेनार अरेंजमेंट जैसे निर्यात नियंत्रण व्यवस्था में शामिल होने का प्रयास कर रहा है। ये समूह पारंपरिक, परमाणु, जैविक और रासायनिक हथियारों और प्रौद्योगिकी का नियमन करते हैं।
एमटीसीआर में भारत के मामले का पिछले साल इटली ने विरोध किया था। वह मरीन विवाद को लेकर भारत से नाखुश था। हालांकि, केरल तट से दूर दो मछुआरों की हत्या के आरोपी दो इतालवी मरीनों को अपने मुल्क वापस लौटने की अनुमति देने के बाद इटली ने अपने विरोध के स्वर को नरम कर लिया। एमटीसीआर में प्रवेश के भारत के प्रयासों को तब प्रोत्साहन मिला जब उसने इस महीने की शुरुआत में हेग आचार संहिता का हिस्सा बनने पर सहमति जताई। हेग आचार संहिता बैलिस्टिक मिसाइल की अप्रसार व्यवस्था से संबंधित है। एमटीसीआर की सदस्यता से भारत उच्चस्तरीय मिसाइल प्रौद्योगिकी की खरीद करने में सक्षम होगा और रूस के साथ इसके संयुक्त उपक्रम को भी बढ़ावा मिलेगा।
NSG पर उम्मीदें कायम : दूसरी ओर, भारत सहित परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं करने वाले देशों की सदस्यता पर चर्चा के लिए इस साल के अंत से पहले परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) की बैठक एक बार फिर हो सकती है। इस बीच, भारत ने रविवार को चीन को स्पष्ट कर दिया कि द्विपक्षीय संबंधों में आगे बढ़ने के लिए भारत के ‘हितों’ का ख्याल रखना जरूरी है। गौरतलब है कि एनएसजी सदस्यता के लिए भारत की हालिया कोशिश चीन के अड़ियल रवैये के कारण नाकाम हो गई थी। 48 देशों वाला समूह एनएसजी गैर-एनपीटी देशों को सदस्यता देने की प्रक्रिया पर खास तौर पर चर्चा के लिए इस साल के अंत से पहले बैठक कर सकता है। इससे भारत को अपनी दावेदारी पर दबाव बनाने का एक और मौका मिल सकेगा। बीते शुक्रवार को दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में संपन्न हुए एनएसजी के पूर्ण अधिवेशन में भारत इस समूह में अपना प्रवेश सुनिश्चित करने में नाकाम रहा था।
भारत को चीन और कुछ अन्य देशों से काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। भारत के एनपीटी पर दस्तखत न करने को उसके विरोध का एक मजबूत आधार बनाया गया था। बहरहाल, राजनयिक सूत्रों ने बताया कि मेक्सिको के सुझाव पर यह फैसला किया गया है कि गैर-एनपीटी देशों के लिए प्रवेश की शर्तों पर विचार के लिए इस साल के अंत से पहले एनएसजी की एक और बैठक आयोजित की जाए। सामान्य स्थिति में एनएसजी की अगली बैठक अगले साल ही किसी महीने में आयोजित की जाती।एनएसजी की अगली बैठक कुछ ही महीनों में होने की खबरें सामने आने के बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा कि हम चीन पर जोर देते रहेंगे कि द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के लिए आपसी हितों, चिंताओं एवं प्राथमिकताओं का ख्याल रखना जरूरी है। विकास का बयान इसलिए अहम है क्योंकि चीनी विदेश मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया है कि बहुपक्षीय मंच एनएसजी में बीजिंग के विरोध का भारत-चीन संबंधों पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ेगा।
विकास ने यह भी कहा कि सोल में हुई बैठक में भारत को भले ही ‘अपेक्षित परिणाम’ हासिल नहीं हुए, लेकिन भारत एनएसजी में शामिल होने के लिए समर्पित प्रयास करता रहेगा। उन्होंने कहा कि आज भारतीय राजनय को नाकामी का डर नहीं है। यदि हमें मन मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि हमें अपनी कोशिशें दोगुनी करनी होंगी।
विकास ने यह भी कहा कि सोल में हुई बैठक में भारत को भले ही ‘अपेक्षित परिणाम’ हासिल नहीं हुए, लेकिन भारत एनएसजी में शामिल होने के लिए समर्पित प्रयास करता रहेगा। उन्होंने कहा कि आज भारतीय राजनय को नाकामी का डर नहीं है। यदि हमें मन मुताबिक नतीजे नहीं मिले हैं तो इसका सीधा सा मतलब है कि हमें अपनी कोशिशें दोगुनी करनी होंगी।
विकास ने कहा कि कुछ प्रक्रियाएं ऐसी होती हैं जिसमें लंबा वक्त लगता है। मैं एनएसजी सदस्यता की प्रक्रिया को इसी श्रेणी में रखूंगा। चीन ने गैर-एनपीटी देशों की सदस्यता पर एनएसजी की बैठक जल्द आयोजित करने के मेक्सिको के सुझाव पर विरोध दर्ज कराया था, लेकिन अमेरिका सहित कई देशों ने इस सुझाव का समर्थन किया था।एनएसजी ने भारत की सदस्यता पर अनौपचारिक चर्चा के लिए एक समिति भी गठित कर दी है और इसकी अध्यक्षता अर्जेंटीना के राजदूत राफेल ग्रॉसी करेंगे।ग्रॉसी की नियुक्ति ऐसे समय में हुई जब एक अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि सोल में हुई एनएसजी की बैठक भारत को सदस्य के तौर पर स्वीकार करने के लिए राह बनाने के साथ संपन्न हुई। ओबामा प्रशासन के अधिकारी ने वॉशिंगटन में बताया कि हमें यकीन है कि इस साल के अंत तक हमें आगे की राह मिलेगी। इसमें कुछ काम करने की जरूरत है। लेकिन हमें यकीन है कि भारत इस साल के अंत तक एनएसजी का पूर्ण सदस्य बन जाएगा।
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