“मैं सब जनता हूँ” यही सोच इन्सान को कुए का मेढ़क बना देती है!
पहन मुखौटा धर्म का दिन भर करते पाप, भंडारे करते फिरे घर में भूखा बाप…..
नई सदी से मिल रही दर्द भरी सौगात, बेटा कहता बाप से तेरी क्या औकात…..
कचरे में फेंकी रोटियाँ रोज ये बयाँ करती है कि पेट भरते ही इंसान अपनी औकात भूल जाता है….. यह सबको समझ नहीं आएगा!
पत्थर के भगवान को लगते छप्पन भोग, मर जाते है फुटपाथ पर भूखे प्यासे लोग…..
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