इस भेद को भलीभांति समझ लो | जो भी तुम्हारे पास है : धन, ज्ञान, प्रतिष्ठा जो भी है, वह तुम नहीं हो | वे तुम्हारी सम्पदाएँ हैं | लेकिन तुम उनसे पृथक हो, भिन्न हो | दूसरी बात कि तुम जो कुछ भी करते हो वह भी तुम्हारा होना नहीं है | तुम चाहो तो कुछ करो और चाहो तो न करो | मसलन, तुम हँसते हो, यह तुम्हारे हाथ में है | चाहो तो हंसो, चाहो तो न हंसो | तुम दौड़ते हो, यह तुम्हारे हाथ में है | चाहो तो दौड़ो, चाहो तो न दौड़ो | लेकिन तुम्हारा होना तुम्हारे हाथ में नहीं है, उसमें कोई चुनाव नहीं है | तुम अपना होना नहीं चुन सकते हो, तुम बाह हो |
कृत्य चुनाव है, तुम उसे चाहे चुनो और चाहे न चुनो | यह तुम्हारे हाथ में है कि तुम यह काम करो या न करो | तुम साधू बन सकते हो, तुम चोर बन सक्ते हो | लेकिन तुम्हारा साधुपन चोरपन दोनों कृत्या है | तुम चुन सकते हो तुम बदल सकते हो | साधू चोर बन सकता है और चोर साधू बन सकता है | लेकिन वह तुम्हारा होना नहीं है | तुम्हारा होना तुम्हारे साधू और चोर होने के पहले है |
ओशो, विज्ञानं भैरव तंत्र
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