‘‘गूंज हैं-सब एक हो’’-सुधांशु शर्मा
मायने बदले-बदले, उतरी सी हुयी हैं शक्ले, इतने महंगे तेरे तेवर क्यों हैं? रिश्तो में हैं क्यो मिलावट, सर पे गुस्सा देता आहट, छत होकर भी सब बेघर क्यो हैं? इधर भी देखो जिधर भी देखो सब लड़े-भिड़े से जुदा, अब तो मानो तुम ये जानो क्या सोचेगा वरना खुदा? गूंज हैं रुठे दिलो को […]