आखिरी सच
शहर में गूंजे बस झूठ ही झूठ, अब तो ये सारा जमाना ही झूठा लागे सच कही छुप कर बैठा हैं शायद जो सबकी आवाजो से कुछ रुठा वो लागे । बढ़ रही बेमानिया, बुराई का अब क्या मैं कहू अन्याय देखती खामोशिया, बिन बोले अब कैसे मैं रहू ईमान कही डर कर बैंठा हैं […]